Description
एक सामजिक कड़ी का अंग होने के नाते हम उसमें जुड़े रहते है चाहे सहमति से या असहमति से l कभी सामाजिक सरोकारों का विरोध करता अन्तहकरण कभी उन सरोकारों में बाध्यता की सांसे लेता एक अबोध जीव जो चाहकर भी विरोध करने की क्षमता नहीँ रखता l
प्रिय काव्यानुरागी पाठकों यह पुस्तक मेरे जीवन की अनुभूतियों का अभिव्यक्ति स्वरूप है। आप के प्रेम और शुभ आशीश की प्रत्याशा में यह पुस्तक आप लोगों की सेवा में प्रस्तुत करते हुए मुझे अपार प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है …..
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